मै वो बूडा बाप हूं...
जिसकी आह सुन तुम गुर्राते हो...
जिसकी सेवा से तुम कतराते हो...
मुझे वृद्ध आश्रम छोड़ आते हो...
बचपन से तेरे युवा तक...
मै बना तेरी परछाई, तेरा साया...
आज तुम मुझसे ही नज़रें चुराते हो...
मेरी काया देख शरमाते हो...
कल तक चार चार कमरों में खेलने वालों...
आज तुम एक नन्हा सा कमरा देने में हिचकिचाते हो...
तेरे जीवन के व्रत किए मैंने...
आज तुम मेरे मरने की दुआ मनाते हो...
हाँ मै वो बुडी माँ हूं...
मुझे नाकारा नासमझ बतलाते हो....
ऐ मेरे मालिक... दुआ है तुझसे...
ले जा तू मुझको जल्दी से ऊपर...
और हाथ जोड़ के मांगती हूँ तुझसे...
जब भी बुलाये... जोड़े से बुलाना...
ये लोग नहीं समझ पाते...
हमारा अकेलापन , हमारी झुकी हुई ये कमर...
हमारी वृधावस्था , हमारी कमज़ोर नज़र...
कहीं लग न जाए किसी को दुआ बन के बददुआ...
देदे इससे पहले शरण अपने दर…
.....स्वाति :)
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