वो हर आती लहर को देख के भाग जाना,
और जाती लहर में महसूस करना रेत का सरकना,
फिर उसी रेत पर ख़्वाबो के, परियों के टीलों को घड़ना,
और अगली लहर को समर्पित उन टीलों को करना,
और जाती लहर में महसूस करना रेत का सरकना,
फिर उसी रेत पर ख़्वाबो के, परियों के टीलों को घड़ना,
और अगली लहर को समर्पित उन टीलों को करना,
अपने ही कदमों के चिन्हों पर चलना,
भीगे किनारों पर सीपियों को इकट्ठा करना,
वो किनारों पर किरणों का छन के बिखरना,
वो बढ़ती घटती लहरों संग दिल का धड़कना,
वो बचपन का दौर याद आता है मुझको,
ये सब देख के, अपने बच्चों की हरकतों में,
आओ चल-चले हम उसी दौर में,
जहां बस ऐसा ही एक समाँ हो,
ख़ुशियों का, ख़्वाबों का, खूबसूरत जहां हो,
ना कल की फ़िकर हो, ना कल का ज़िकर हो,
अभी में, आज में, जीने की बस ग़रज़ हो,
आओ चल चले हम उसी दौर में फिर ।।।